इतिहास
* अतीत का अध्ययन इतिहास कहलाता है ।
* इतिहस के जनक हेरोडोटस को कहते हैं ।
* इतिहास को 3 खण्डों में बाँटते हैं ।
(1) प्राक् ऐतिहासिक काल
इतिहास का वह समय जिसमें मानव लिखना पढ़ना नहीं जानता था इसकी जानकारी केवल पुरातात्विक साक्ष्य से मिली है। इसके अंतर्गत् पाषाण काल को रखते हैं।
पाषाण काल
वह समय जब मानव पत्थर के औजार एवं हथियार का उपयोग करता था, पाषाण काल कहलाता है। पाषाण काल को 4 भागों में बाँटा गया है
(1) पुरा पाषाण काल- यह इतिहास का सबसे प्रारम्भिक समय था। इस समय के मानव को आदि मानव कहा जाता है। इस समय का मानव खानाबदोश (खाद्य संग्राहक) अर्थात् उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य जानवरों की भाँति ही अपना पेट भरना था। इस समय के मानव की सबसे बड़ी उपलब्धि आग की खोज थी।
(2) मध्य पाषाण- यह पुरापाषाण के बाद का काल था। इस समय मानव के हथियार छोटे आकार के थे। इस समय के मानव की सबसे प्रमुख कार्य अंत्योष्टि (अंतिम संस्कार) कार्यक्रम था।
(3) नव या उत्तर पाषाण काल- इस काल में मानव ने स्थायी आवास बना लिया था। साथ ही मानव कृषि तथा पशुपालन भी प्रारम्भ कर दिया। मानव ने इस काल में पहिया तथा मनका (घड़ा) की खोज की।
Note:-
(1) मानव ने खेती 7000 ईसा पूर्व पाकिस्तान के सुलेमान एवं किर्थर पहाड़ियों के बीच की थी। पहली कृषि जौ एवं गेहूँ की थी।
(2) मानव द्वारा पाला गया पहला पशु कुत्ता था।
(4) ताम्रपाषाण काल- यह पाषाण काल का अंतिम समय था । इस समय तांबे की खोज हुई थी। जिस कारण औद्योगिकीकरण शुरू हो गया। इसी औद्योगिकीकरण का विकसित रूप सिंधु सभ्यता में देखने को मिलता है।
Q.1. किस काल में मानव आखेटक (शिकारी) था? :- पुरा-पाषाण काल में
Q.2. किस स्थान से पहली बार चावल का साक्ष्य मिला :- इलाहाबाद का कोल्डिहवा में।
(2) आद्य-ऐतिहासिक काल
* इस काल में मानव द्वारा लिखी गई लिपी को पढ़ा नहीं जा सका है, किन्तु लिखित साक्ष्य मिले हैं। इस काल के जानकारी का स्त्रोत भी पुरातात्विक साक्ष्य ही है।
* इसमें सिंधु सभ्यता को रखते हैं।
सिंधु सभ्यता
* यह सभ्यता सिंधु नदी के तट पर मिली थी, इस लिए इसे सिन्धु सभ्यता कहते हैं | इसकी जानकारी के लिए पहली खुदाई हड़प्पा से हुई थी। अतः इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहते हैं।
* सिंधु सभ्यता की जानकारी (Message) चार्ल्स मैशन ने दिया था। सिंधु सभ्यता सर्वेक्षण जेम्स कनिंघम ने किया। सिंधु सभ्यता 13 लाख वर्ग किमी. में फैली है।
* सिंधु सभ्यता का नामकरण जॉन मार्शल ने किया था।
* सिंधु सभ्यता की पहली खुदाई दयाराम साहनी ने की थी।
* सिंधु सभ्यता का आकार त्रिभुजाकार है।
* इसका विकास 2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व तक हुआ।
→ (उत्तर) माण्डा (चिनाब नदी)
→ (पश्चिम) - सुतकार्गेडोर (दाश्क नदी)
→ (पूरब) आलमगिरपुर (हिन्डन नदी)
→ (दक्षिण) दयामाबाद (प्रवरा नदी)
Trick → स्थल - सम =AD
→ नदी – डच = है पर
(1) इसकी पश्चिमी सीमा पाकिस्तान के सुतका डोर में थी, जो
दाश्क नदी के तट पर थी।
(2) इसकी उत्तरी सीमा कश्मीर के मांडा में चिनाब नदी के तट पर थी।
(3) इसकी पूर्वी सीमा उत्तर प्रदेश के आलमगीरपुर में थी। जो हिन्डन नदी के किनारे थी।
(4) इसकी दक्षिणी सीमा महाराष्ट्र के दयामाबाद में प्रवरा नदी के तट पर थी।
"सिंधु सभ्यता के प्रमुख स्थल''
→ हड़प्पा (1921) : इसकी खुदाई दयाराम साहनी ने की। यह रावी नदी के तट पर पाकिस्तान के "माऊन्ट गोमरी" जिला में स्थित है।
→ यहाँ से निम्नलिखित वस्तुएँ मिली हैं
(i) कुम्हार का चाक
(ii) अन्नागार
(iii) श्रमिक आवास
(iv) मातृदेवी की मूर्ति
(v) लकड़ी की ओखली
(vi) लकड़ का ताबूत
(vii) R. H. 37 कब्रिस्तान
(viii) हाथी का कपाल
(ix) स्वास्तिक चिन्ह ।
→ "मोहनजोदड़ो 1921"
* इसकी खुदाई सन् 1921 ई. में राखलदास बनर्जी ने की। यह पाकिस्तान के लरकाना जिले में स्थित है। यह सिन्धु नदी के तट पर है
* यह सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा शहर है।
* यहाँ मृतकों का एक बहुत बड़ा टिला मिला है।
→ यहाँ से निम्नलिखित वस्तुएँ मिली हैं
(i) पुरोहित आवास
(ii) घर में कुँआ
(iii) विशाल स्नानागार
(iv) अन्नागार
(v) सूती वस्त्र
(vi) सबसे चौड़ी सड़क
(vii) सभागार
(viii) पशुपति शिव
(ix) काँसे की नर्तकी
(x) ताँबे का ढ़ेर।
Note : मोहनजोदड़ों का अन्नागार सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा भवन या इमारत है।
"चंदहुदड़ो 1931"
* इसकी खुदाई सन् 1931 ई. में गोपाल मजूमदार ने की।
* यह पाकिस्तान में सिन्धु नदी के तट पर स्थित है।
* यही एक मात्र शहर है, जो दुर्ग रहित है।
* यह एक औद्योगिक शहर है।
* यहाँ निम्नलिखित वस्तुएँ मिलीं
(i) मेक-अप सामग्रियाँ
(ii) लिप्स्टिक
(iii) शीशा
(iv) मनका
(v) गुड़िया
(vi) सुई
(vii) अलंकृत ईट
(viii) बिल्ली का पीछा करता हुआ कुत्ता।
"रोपड़'' 1953
* इसकी खुदाई यज्ञदत्त शर्मा ने 1953 ई. में की । यह पंजाब के सतलज नदी के किनारे स्थित है।
* यहाँ मानव के साथ-साथ उसके पालतू जानवरों का भी शव मिला है।
Note :- ऐसा ही शव नव-पाषाण काल में जम्मु–कश्मीर के बुर्जहोम में मिला था।
"बनवाली' --->
* इसकी खुदाई रविन्द्र सिंह न की।
* यह हरियाणा में स्थित है।
* इसके समीप रंगोई नदी है।
* यहाँ जल-निकासी की व्यवस्था नहीं थी।
* जिस कारण घरों में सोखता मिला है।
* यहाँ की सड़के टेढ़ी-मेढ़ी थीं।
"कालीबंगा'
* इसका अर्थ होता है काली मिट्टी की चूड़ी।
* यहाँ से अलंकृत ईट, चुड़ी, जोता हुआ खेत हल एवं हवन कुँड मिले हैं।
* यह राजस्थान में सरस्वती (घग्घर) नदी के किनारे है।
* इसकी खुदाई B.K. थापड़ तथा B.B. लाल ने की।
"धौलावीरा"
* यह गुजरात में स्थित है। यह सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल है।
* इसकी खुदाई रविन्द्र सिंह ने की।
"सुरकोटदा"
* यह गुजरात में स्थित है। यहाँ से कलश शवाधान तथा घोड़े की हड्डी मिली है।
"लोथल'
* यहाँ सिंधु सभ्यता का बंदरगाह स्थल है।
* यहाँ से गोदीवाड़ा मिला है।
* यहाँ घर के दरवाजें सड़कों की ओर खुलते थे।
* यहाँ फारस की मुहर मिली है, जो विदेशी व्यापार का संकेत है।
* यहाँ से युगल शवाधान मिला है, जो सतीप्रथा का प्रतीक है।
"रंगपुर"
* यह गुजरात में स्थित है।
* यहाँ से धान की भूसी मिली है।
* सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल धौलावीरा है (गुजरात + पाकिस्तान)
* भारत में सबसे बड़ा स्थल राखीगढ़ी (हरियाणा) है।
* सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा शहर मोहनजोदड़ो।
"सिंधु सभ्यता की विशेषताएँ'
* सिंधु सभ्यता एक नगरीय (शहरी) सभ्यता थी।
* यहाँ की सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी, तथा ये पूरब-पश्चिम दिशा में थी, जिससे हवा द्वारा सड़क स्वतः साफ हो जाती थी।
* नालियाँ ढ़की हुई थी।
* अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था।
* इनका व्यापार विदेशों तक होता था।
* इनका समाज मातृ सतात्मक था।
* इनकी लिपी भाव चित्रात्मक थी, जिसे पढ़ा नहीं जा सका है।
* इनके मुहरों पर सर्वाधिक 1 सिंग वाले जानवर का चित्र था।
* इनके मुहरों पर गाय का चित्र नहीं मिला है।
* यहाँ माप-तौल के लिए न्यूनतम बाट 16 kg का था।
* सिंधु सभ्यता के लोग युद्ध या तलवार से परिचित नहीं थे।
* सिंधु सभ्यता के विनाश का सबसे बड़ा कारण बाढ़ को माना जाता है।
"मेसोपोटामिया की सभ्यता" ( 10,000 ई.पू.)
* इसका विकास इराक में टिगरीस एवं यूफ्रेट्स नदी (दजला फरात) नदियों के मध्य में हुआ है।
* यहाँ की मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ थी। यह सभ्यता ग्रामीण थी। इसके अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था।
* इस समय के मंदिरों को जिगुरद् कहा जाता था।
* मेसोपोटामिया की सभ्यता के 4 भाग थे
(i) सोमेरियन की सभ्यता।
(ii) बेबीलोन की सभ्यता।
(iii) असिरिया की सभ्यता।
(iv) कैल्ड्रिया की सभ्यता।
* झूलता हुआ बगीचा बेबीलोन में स्थित है।
* सिंकदर ने इस सभ्यता का विनाश कर दिया ओर इसके स्थान पर ग्रीक सभ्यता को थोप दिया।
* विश्व की सबसे पहली सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता थी।
* जबकि विश्व की पहली नगरीय सभ्यता सिंधु सभ्यता थी।
मिस्र की सभ्यता (3100 ई.पू.)
* यह मिस्र के रेगिस्तानों में स्थित थी।
* इसे नील नदी की देन कहते हैं।
* इस सभ्यता का विकास फिरौन के नेतृत्व में किया गया था।
* इस सभ्यता में पिरामिड, सूर्य कैलेण्डर तथा ममी का विकास हुआ था । अर्थात् इस सभ्यता का रसायन शास्त्र सुदृढ़ था।
* गिजा का पिरामीड सबसे प्रसिद्ध है।
"रोम की सभ्यता'' (600 ई.पू.)
* यह इटली में विकसित थी।
* इन्होंने पूरे भू–मध्यसागर पर अधिकार कर लिया था।
* प्राचीन सभ्यता में यह सबसे विकसित सभ्यता थी। आज भी इस सभ्यता के अवशेष सुरक्षित बचे हुए हैं | जो पर्यटन का आकर्षण केन्द्र हैं।
* इस सभ्यता के दो सबसे बड़े राजा जुलीयस सीजर एवं आगस्टस थे।
Note: जूलियस सीजर की हत्या धोखे से उसके मंत्रीमण्डल द्वारा कर दी गई।
* जूलयिस सीजर नामक नाटक William Shakespeare ने लिखा हैं।
"फारस की सभ्यता' (500 ई.पू.)
* यह वर्तमान ईरान में थी। इस सभ्यता का विकास तेजी से हुआ था। इन्होंने पूरे अरब प्रायद्वीप पर अधिकार कर लिया था।
* इनकी भाषा फारसी थी तथा पारसी धर्म को मानते थे।
* सिंकदर ने इस धर्म का अंत कर दिया।
"स्पाटा"
* स्पाटा अपने बहादूर सैनिकों के लिए विख्यात है। यह ग्रीस के पास का एक छोटा सा क्षेत्र था।
*स्पाटा के मात्र 300 सैनिकों ने लियोनाइडस के नेतृत्व में ग्रीस के 20000 सैनिकों को मात दे दी थी।
* ग्रीस की विशाल सैना का नेतृत्व जर्कसीज कर रहा था।
* जर्कसीज ने धोखे से Spartans को हरा दिया।
पीली नदी की सभ्यता - यह चीन में 5000 ई.पू. विकसित थी। हांगहो नदी के तट पर इसका विस्तार था। यह सभ्यता अपने उपजाऊ भूमि के लिए प्रसिद्ध थी।
(3) ऐतिहासिक काल
* इसके बारे में लिखित स्त्रोत उपलब्ध हैं, और इसे पढ़ा भी जा सका है। इसके अंतर्गत वैदिक काल से लेकर अभी तक का समय आता है।
सिक्का (Coins) :-
सिक्के का अध्ययन न्यूमेसमेटिक्स कहलाता है।
(1) टेराकोटा का सिक्का मिट्टी का बना था। यह सिंधु सभ्यता में बना था।
(2) मौर्य काल के समय आहत या पंचमार्क सिक्के का प्रयोग हुआ । आहत् सिक्कों पर लिखावट नहीं होती थी। केवल चित्र बने होते थे। यह पहला धातु का सिक्का था ।
(3) पर्ण चाँदी के सिक्के थे, जो मौर्य काल में प्रचलित थे।
(4) सीसा का सिक्का सातवाहन काल में प्रचलित थे।
(5) पहली बार सोने का सिक्का यूनानी शासकों द्वारा प्रचलित किया गया।
(6) शुद्ध सोने का सिक्का कुषाण शासकों द्वारा प्रचलित किया गया।
(7) सर्वाधिक मात्रा में तथा सबसे अधिक अशुद्ध सोने का सिक्का गुप्त काल में प्रयोग हुआ । इस समय स्कंद गुप्त शासक थे।
(8) चाँदी का सिक्का गुप्त काल में चन्द्रगुप्त-II विक्रमादित्य के समय प्रचलित हुआ।
(9) मयूर शैली का सिक्का गुप्त काल में समुद्र गुप्त के समय प्रयोग में लाया गया । इस सिक्के का प्रचलन गुप्त काल में सर्वाधिक था।
(10) कौड़ी का प्रयोग भी गुप्त काल में ही हुआ।
(11) चमड़े का सिक्का हुमायूँ के शासन काल में सियाबुद्दीन ने प्रारम्भ किया।
(12) रूपये का प्रयोग शेरशाह शूरी ने किया।
(13) दाम का प्रारम्भ शेरशाह शूरी ने ही किया था।
(14) सोने की अशर्फी का प्रारम्भ भी शेरशाह शूरी ने ही किया था।
"अभिलेख"
* पत्थरों को खोदकर लिखना अभिलेख कहलाता है।
* छोटे पत्थरों पर लिखना शिलालेख कहलाता है।
* स्तम्भ के समान ऊँचे पत्थरों पर लिखना स्तम्भ लेख कहलाता है।
* अभिलेखों का अध्ययन एपिग्राफी कहलाता है।
प्रमुख अभिलेख -
* विश्व में अभिलेख लिखने का प्रारम्भ ईरान के शासक डेरियस ने किया था।
* पहला अभिलेख बोगजगोई से मिला जो तुर्की या Asia Minor में है।
(1) हाथी गुफा अभिलेख (उड़ीसा)- इसे कलिंगराज खारवेल ने लिखा, इसमें कलिंग युद्ध की चर्चा है | युद्ध के समय कलिंग का राजा नंदराज था। (गंगवंश)
(2) ऐहोर अभिलेख (राजस्थान)- पुलकेशिन-II ने हर्षवर्धन पर विजय की चर्चा की है।
(3) जुनागढ़ अभिलेख (गुजरात)- उसमें रूद्रदायन ने सुदर्शन झील की चर्चा की है। उस झील को चन्द्रगुप्त मौर्य ने बनवाया था।
(4) प्रयाग अभिलेख (इलाहाबाद)- इसमें समुद्रगुप्त ने अपने विजय अभियान की चर्चा की है।
(5) भीतरी अभिलेख (गाजीपुर U.P.)- स्कंदगुप्त ने हुणों पर आक्रमण की चर्चा की है।
(6) बिहार अभिलेख (बिहार शरीफ)- स्कंदगुप्त ने अवश्मेघ यज्ञ की चर्चा की है।
(7) देवपाड़ा अभिलेख (बांग्लादेश)-यह सेन वंश के शासक विजयसेन का है।
(8) ग्लवालियर अभिलेख (मध्य-प्रदेश)- प्रतिहार शासक भोज का है।
(9) मंदसौर अभिलेख (MP)- मालवा शासक यशोवर्मन का है।
स्तम्भ लेख
यह स्तंभ के समान ऊँचे होते हैं।
(1) मेहरौली स्तम्भलेख (दिल्ली)– चन्द्रगुप्त-II (विक्रमा दित्य) का है। इस पर आज तक जंग नहीं लगा है, अर्थात् यह अपने रासायनिक गुण के लिए प्रसिद्ध है।
(2) मथुरा स्तम्भलेख (U.P.)- चन्द्रगुप्त-II विक्रमादित्य का है। इसमें सहिष्णुता की चर्चा है।
(3) एरण स्तंभलेख (M.P.)- भानुगुप्त का है। इसमें सती–प्रथा की चर्चा है।
(4) बौद्ध स्तंभलेख (M.P.)- वासुदेव का है। शुंग वंश की चर्चा है।
(5) हेलियोडोरस/गस्ड़ध्वज स्तंभलेख (M.P.)- इसमें भागभ्रद ने भागवत धर्म की जानकारी दी है।
विदेशी यात्री द्वारा भारत का वर्णन-
(1) हेरोडोटस- हिस्टोरिका
(2) मेगास्थनीज-इण्डिका
(3) Periplus of the Erythrean Sea - अज्ञात
(4) टॉलमी-ज्योग्राफिका
(5) प्लिनी- Natural Historica
(6) अलबरूनी-किताबुल-हिन्द/तहकीक-ए-हिन्द
(7) मार्कोपोलो-चीन का यात्री
(8) फाहियान–फौ-कूओ-थी-चन्द्रगुप्त-II
(9) हवेन सांग-सी-क्यू-की-हर्षवर्धन
* फाहियान (399 ई.) : 'फौ-कूओ-थी" (पुस्तक) यह चन्द्रगुप्त-II (विक्रमादित्य) के दरबार में आया था। यह उस समय के भवन तथा कौड़ी की चर्चा की है।
* शुंग-चुन (512 ई.): (चीन)-यह बंगाल के बोस में लिखा हुआ है।
* हवेनसांग (629 ई.): सी-यू-की-यह हर्षवर्धन के दरबार में आया।
* इसने नालंदा विश्व विद्यालय में अध्ययन तथा अध्यापन दोनों किया। इसे यात्रियों का राजकुमार कहते हैं |
* इत्सिंग (673 ई.): चीनी यात्री था। यह त्रिपिटक की 400 प्रतियाँ (Photocopy) अपने साथ चीन लेकर गया था।
* इब्नबतूता- यह मोरक्को का रहने वाला था। यह 7000 किमी. की यात्रा करके मुहम्मद बिन तुगलक के दरबार में आया। इसकी पुस्तक "रेहला" थी।
* अब्दुल रज्जाक- यह फारस का रहने वाला था। विजयनगर काल में आया था। इसका पुस्तक मतला–ए–साहेन है। यह कृष्णदेव राय के दरबार में आया था।
"साहित्यिक स्त्रोत"
* लिखित स्त्रोत को साहित्यिक स्त्रोत कहते हैं। प्राचीन इतिहास की जानकारी का यह सबसे बड़ा स्त्रोत है।
* गैर धार्मिक स्त्रोत- इसका संबंध किसी भी धर्म से नहीं रहता है।
उदाहरण- अर्थशास्त्र।
* धार्मिक स्त्रोत-इसका संबंध किसी-न-किसी धर्म से रहता है।
* गैर-ब्राह्मण- वैसे स्त्रोत जिसका संबंध हिन्दु धर्म से नहीं रहता, उसे गैर-ब्राह्मण कहते हैं।
* जैन-साहित्य- यह प्राकृत भाषा में मिले हैं, इन्हें आगम कहते हैं।
उदाहरण- 12 अंग, 12 उपांग, आधारांग सूत्र, भगवति सूत्र, मूल-सूत्र, आदि-पुरान।
* बौध साहित्य- बोध साहित्य पाली भाषा में मिले हैं । जातक ग्रन्थ में महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्म की 200 कहानियाँ हैं।
* ललित विस्तार में महात्मा बुद्ध की पूरी जीवनी है।
* अंगुत्तर निकाय में 16 महाजनद् की चर्चा है।
* बौद्ध धर्म की सबसे पवित्र पुस्तक त्रिपिटक है, जो 3 पुस्तकों का समूह है।
(1) सूत पिटक- यह सबसे बड़ा पिटक है। इसे बौध धर्म का एनसाइक्लोपिडिया कहते हैं |
(2) विनय पिटक- यह सबसे छोटा पिटक है। इसमें बौध धर्म के प्रवेश की चर्चा है।
(3) अधिम्म पिटक- इसमें महात्मा बुद्ध के दार्शनिक विचारों की चर्चा है।
* वेद- वेदों की रचना ईश्वर ने की है । अतः वेद को अपौरूषेय कहा जाता है।
* गुप्त काल में कृष्ण द्वैवायन वे व्यास ने वेदों का संकलन (Collection) किया। प्रारम्भ में वेदों की संख्या 3 थी, अतः वेद को त्रयी कहा गया है।
* अथर्ववेद को बाद में शामिल किया गया इसलिए इसे वेदत्रैयी में नहीं रखते हैं।
(1) ऋग्वेद- इसमें 10 मंडल, 1028 सुक्त तथा 10580 ऋचाएँ हैं । ऋचाओं की अधिकता के कारण ही इसे ऋग्वेद कहते है । यह सबसे प्राचीन एवं सबसे बड़ा वेद है। इसमें गायत्री मंत्र की चर्चा की है, जो सूर्य भगवान को समर्पित है।
* पहली बार शुद्र का प्रयोग ऋग्वेद में हुआ।
* ऋग्वेद का दूसरा तथा 7 वाँ मंडल पुराना है क्योंकि इसका संकलन पहले ही हो गया था।
* पहला तथा 10 वाँ मंडल नया है, क्योंकि इसका संकलन बाद में हुआ।
* 9 वें मंडल में सोम देवता की चर्चा है।
* ऋग्वेद के ज्ञानी को खेतृ कहते हैं।
* ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है, जिसमें चिकित्सा की चर्चा है। इसके ज्ञानी को प्रजापति कहते है।
(2) "सामवेद''- इसमें 1875 मंत्र हैं। किन्तु वास्तव में 99 मंत्र ही सामवेद के हैं। बाकी मंत्रों को ऋग्वेद से ग्रहण कर लिया है।
* सामवेद में भारतीय संगीत के सात स्वर सा, रे, ग, म, प, ध, नी, की चर्चा है।
* ये संगीत यज्ञ के समय गाये जाते है।
* सामवेद ज्ञानी को उदगाता कहते हैं।
* सामवेद का उपवेद गंधर्ववेद है।
* गंधर्ववेद के ज्ञानी को नारद कहते हैं।
(3) यजुर्वेद- इसमें 1990 मंत्र हैं। इसमें युद्ध एवं कर्म-कांड की चर्चा है।
* इसे 2 भाग में बाँटते हैं -
(i) कृष्ण यजुर्वेद (गद्य)
(ii) शुक्ल यजुर्वेद (पद्य)
* इसके ज्ञानी को अघर्यु कहते हैं । यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है। धनुर्वेद के ज्ञानी को विश्वामित्र कहते हैं।
(4) अथर्ववेद- इसकी रचना सबसे बाद में उत्तर वैदिक काल में हुई इसमें 6000 मंत्र हैं।
* इसमें जादू-टोना, वसीकरण, इत्यादि की चर्चा है।
आरण्यक- वैसी पुस्तक जिसकी रचना जंगल में की गई हो, आरण्यक कहलाता है।
* अथर्ववेद को छोड़कर सभी पुस्तक आरण्यक हैं।
वेदांग- वेदों को भलि–भाँति सममझने के लिए वेदांग की रचना की गई।
* वेदांग की संख्या 6 हैं :-
व्याकरण , ज्योतिष , निरूक्त , शिक्षा , कल्प , छन्द ,
* व्याकरण = अष्टाध्यायी (पाणिनी)
* ज्योतिष = वृहत् संहिता (वाराहमिहिर)
* निरूक्त = निरूक्त शास्त्र
* शिक्षा = शिक्षा शास्त्र
* कल्प = कल्प शास्त्र
* छन्द = छन्द शास्त्र
पुराण- इसकी रचना महर्ष ऋषि तथा उग्रश्रवा ने किया।इसकी संख्या 18 है।
* इसे पाँचवा वेद या वेदों का वेद कहते हैं।
* इससे प्राचीन राजवंशों की जानकारी मिलती है।
* विष्णु पुराण- इससे मौर्य वंश की जानकारी मिलती है।
* मत्स्य पुराण- इससे सातवाहन वंश की जानकारी मिलती है। इसमें विष्णु भगवान के 10 अवतारों की चर्चा है।
* वायुपुराण- इसमें गुप्त वंश की जानकारी मिलती है। इसमें लिखा है कि समुद्रगुप का घोड़ा तीन समुद्र का पानी पीता था।
* उपनिषद्- इसका अर्थ होता है, गुरू के समीप बैठकर ज्ञान प्राप्त करना। यह ब्राह्मणों के विरूद्ध राजपुतों की एक प्रक्रिया मानी जाती है।
* उपनिषद् 108 हैं, किन्तु 13 उपनिषद् को ही मान्यता प्राप्त है।
वृहद् नारायण उपनिषद- यह सबसे बड़ा तथा प्राचीन है।
कठोपनिषद- इसमें यम एवं नचिकेता की चर्चा है। इसमें 'ॐ' शब्द के महत्व को दर्शाया गया है।
मुंडकोपनिषद- इसमें सत्यमेव जयते की चर्चा है।
जबालोपनिषद- इसमें ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश अर्थात् त्रिमूर्ति की चर्चा है।
अलोपनिषद- यह सबसे बाद का उपनिषद् है। इसकी रचना अकबर के साथ हुई।
स्मृति साहित्य- इसमें प्राचीन राजवंशों की जानकारी मिलती है। स्मृति साहित्य की संख्या 36 है। विष्णु स्मृति + नारद स्मृति से गुप्त काल की जानकारी मिलती है।
मनु स्मृति तथा याज्ञवल्य स्मृति से मौर्य काल की जानकारी मिलती है।
याज्ञवल्य स्मृति में जुआ खेलने को उचित बताया गया। मनुस्मृति को धर्म शास्त्र कहते हैं। इसमें ऊँची जाति को वरीयता दी गई है। दलित तथा महिला को नीच दिखाया गया है।
इसमें विवाह के लिए पुरूष की आयु 25 वर्ष तथा लड़की की आयु 12 वर्ष बताया गया है।
* इसमें 8 प्रकार के विवाह की चर्चा है।
* संस्कार की संख्या 16 होती है।
* दाह संस्कार अंतिम संस्कार होता है।
ऋण तीन प्रकार के होते हैं
(i) देवऋण
(ii) ऋषिऋण
(iii) पितृऋण
पुरूषार्थ 4 प्रकार के होते हैं
(i) धर्म
(ii) अर्थ
(iii) काम
(iv) मोक्ष
आश्रम की संख्या 4 है
जन्म से 5 वर्ष की अवस्था को बाल्यावस्था या शिशुवस्था कहते हैं।
(i) ब्रह्मचर्य-5y - 25y (गुरूकुल में शिक्षा)
(ii) ग्रहस्थ जीवन-25y - 50 y (परिवार के साथ)
(ii) वानप्रस्थ-50y - 75y (सामाजिक तथा धार्मिक जीवन)
(iv) सन्यासी जीवन-75y - (वन में तपस्या)
महाकाव्य- महाकाव्य की संख्या 2 है
(i) महाभारत तथा
(ii) रामायण
रामायण- इसकी रचना वाल्मिकी ने की। प्रारम्भ में इसमें 12000 श्लोक थे, किन्तु वर्तमान में 24000 श्लोक हैं | उसे गुप्त काल में पूरा किया गया था ।
महाभारत- इसकी रचना वेद-व्यास ने की । इसका प्रारम्भिक नाम जय-संहिता था। जिसमें 8800 श्लोक थे । वर्तमान में 1 लाख श्लोक हैं।
* महाभारत के खंडों को पर्व कहा जाता है। इसमें कुल 18 पर्व है। सबसे महत्वपूर्ण पर्व भीष्म पर्व है। जिसमें अर्जुन तथ कृष्ण के वार्तालाप की चर्चा है । भीष्म-पर्व को भागवत् गीता या गीता कहा जाता है।
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